73 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 की विशेषाताएं |
73 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 की विशेषाताएं
संविधान संशोधन के प्रावधानों या विशेषताएं को दो श्रेणियों आर्थात अनिवार्य प्रावधन व ऐच्छिक प्रावधानों में बांटा जा सकता है।
अनिवार्य प्रावधान वे हैं, जो राज्य विधानमंडल को राज्यों के पंचायती राज अधिनियम में शामिल करने होंगे। ऐच्छिक प्रावधान वे हैं, जो राज्य विधानमंडल की इच्छा पर है कि वे उन्हें अमल में लाए या ना लाए। संविधान 73वां संशोधन अधिनियम के प्रति अनुबंध् -2 में दी गई है। अनिवार्य व ऐच्छिक प्रावधान इस प्रकार हैं -
क. अनिवार्य प्रावधन
ग्राम सभा का गठन
ग्राम सभा स्तर पर पंचायत क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी ग्राम से संबंधित नामावली में दर्ज व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है। प्रत्येक ग्राम पंचायत पर ग्राम सभा का गठन आवश्यक है।
पंचायतों का गठन
ग्राम, मध्य व जिला स्तर पर पंचायतों का गठन होगा। इस प्रकार देश में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था होगी। लेकिन जिन राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की जनसंख्या 20 लाख से कम है वहां पर मध्य स्तर का गठन करना आवश्यक नहीं।
पंचायतों की संरचना
पंचायत के तीनों स्तरों पर सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होगा। लेकिन अध्यक्ष पदों के लिए निचले स्तर अर्थात ग्राम पंचायत को छोड़कर मध्य व जिला स्तर पर चुनाव प्रत्यक्ष रूप से चुने सदस्यों द्वारा किया जाएगा। ग्राम पंचायत स्तर पर अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से हो या अप्रत्यक्ष रूप से हो, यह राज्य विधन मंडल पर छोड़ दिया है।
आरक्षण
पंचायतों के तीन स्तरों पर अनुसूचि जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगा तथा इनमें एक-तिहाई आरक्षण इन वर्गों की महिलओं को भी होगा। सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में अध्यक्षों का भी आरक्षण होगा, जिनमें एक-तिहाई महिलाएं होंगी।
पंचायतों के तीन स्तरों पर कुल सदस्यों व अध्यक्षों में से एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। ये भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में चक्रानुक्रम यानी बारी-बारी से आबंटित होंगे।
अवधि
पंचायतों का कार्यकाल उनकी पहली बैठक से पांच वर्ष का होगा। पंचायतों को भंग कर दिए जाने की स्थिति में चुनाव 6 महीने के अंदर होने जरूरी हैं।
राज्य वित्त आयोग का गठन
हर पांच वर्ष में राज्यपाल राज्य वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों को आर्थिक स्थिति सुधारने से संबंधित अनेक सिफारिशें देगा।
राज्य चुनाव आयोग का गठन
पंचायतों के चुनाव कराने और निर्वाचन नामावली तैयार करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया जाएगा।
ख. ऐच्छिक प्रावधान
ऐच्छिक प्रावधान वे हैं, जो राज्य विधानमंडल की इच्छा पर छोड़ दिया गया है। दूसरे शब्दों में उनका होगा अनिवार्य नहीं है। संविधान संशोधन अधिनियम में उसके उल्लेख मात्र कर दिया है।
1. विभिन्न स्तरों के नाम
पंचायतों के तीन स्तरों के नाम क्या-क्या होंगे यह राज्य विधानमंडल को तय करना है। यही कारण है कि पंचायतों के नाम सभी राज्यों में एक समान नहीं है। निम्न स्तर पर कहीं ‘विलेज’ पंचायत है तो कहीं ‘ग्राम पंचायत’ है। मध्य स्तर पर कहीं पंचायत समिति है, तो कहीं क्षेत्र पंचायत है, कहीं जनपद पंचायत है, कहीं मंडल पंचायत है, तो कहीं तालुका पंचायत है। जिला स्तर पर कहीं जिला पंचायत हैं, तो कहीं जिला परिषद हैं।
2. पंचायतों के अध्यक्षों के नाम
इनमें भी सभी राज्यों में समानता नहीं है। कहीं पर ग्राम स्तर पर अध्यक्ष का नाम, ‘प्रधान’ है तो कहीं ‘सरपंच’ है। मध्य स्तर के अध्यक्ष को कहीं ‘प्रमुख’ कहते हैं तो कही ‘प्रधान’ से संबोधित करते हैं।
3. पंचायतों का गठन
क. ग्राम पंचायत स्तर पर अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष हो या परोक्ष यह भी विधानमंडल पर छोड़ा हुआ है।
ख. ग्राम पंचायत के अध्यक्षों का प्रतिनिध्त्वि मध्य स्तर पर व मध्य स्तर के अध्यक्षों का प्रतिनिध्त्वि उच्च पर हो या न हो यह भी राज्य विधानमंडल पर छोड़ा हुआ है।
ग. सांसद या विधान सभा के सदस्य मध्य या उच्च स्तर के सदस्य हों, यह भी राज्य के विधानमंडल पर छोड़ा हुआ है।
4. शक्तियां व अध्किर
राज्य व विधानमंडल विधि् द्वारा पंचायतों को वे सभी शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाएं। निर्दिष्ट शर्तों के अधीन पंचायत आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करेगी तथा उन्हें क्रियान्वित करेगी जिसमें विभिन्न योजनाएं भी शामिल हैं। संविधान संशोधन में 11वीं अनुसूची संलग्न है, जिसमें 29 विषय सूचीबद्ध हैं उन्हें भी योजना बनाते समय शामिल किया जाना है। तीन स्तरों के अतिरिक्त ग्राम सभा के अधिकार व शक्तियां कितनी हो वह भी राज्य विधानमंडल पर छोड़ दिया है।
5. वित्त
पंचायतों को कर, पथ-कर व शुल्क लगाने, करों का बंटवारा करने तथा अनुदान लेने का प्रावधान भी विधानमंडल पर छोड़ा हुआ है।
6. लेखा
पंचायतों के हिसाब-किताब की जांच आदि का प्रावधान भी राज्य के विधानमंडल द्वारा किए जाने का प्रावधान है।
उपर्युक्त से स्पष्ट है कि पंचायतों को अध्किर व शक्तियां दने का दायित्व संपूर्ण रूप से राज्य विधानमंडल पर छोड़ा गया है। इसलिए, राज्य विधानमंडल ने राज्य के पंचायती राज्य अधिनियमों में अनिवार्य प्रावधान शामिल करके बाकी पहले से चले आ रहे प्रावधान ही अधिनियमों में रख दिए हैं। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि पंचायतों को वांछित अधिकार व शक्तियां तथा इनको पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्त का प्रावधान होना जरूरी है। तभी जाकर ये संस्थाएं स्वायत्त शासन की संस्थाएं बनती है जैसा कि संविधान संशोधन की धारा 243-छ में इन्हें ऐसा बनाने के लिए कहा गया है। संविधान संशोधन में वैसे 29 विषय 11वीं अनुसूची के माध्यम से पंचायतों को सौंपो गए हैं।
यह अधिनियम निम्न भागों में लागू नहीं हैः
1. विशिष्ट अनुसूचित क्षेत्र
2. नागालैण्ड, मेघालय व मिजोरम राज्य
3. मणिपुर राज्य के ऐसे पर्वतीय क्षेत्रों में जहां पर पर्वतीय परिषद विद्यमान है।
4. पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में जहां पर दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद कार्यरत है, जिला स्तर की पंचायत व्यवस्था कारगर नहीं होगी। जहां गोरखा पर्वतीय परिषद प्रक्रियाएं एवं अधिकार प्रभावित होते हों।
5. वर्तमान कानून एवं पंचायतों का बना रहनाः
इस अधिनियम को ध्यान में रखकर एक वर्ष के अंदर सभी राज्यों को अपने पंचायत अध्नियमों में संशोध्न करने होंगे। लेकिन ऐसा करने से पहले सभी पंचायतें अपने कार्यकाल की समाप्ति तक बनी रहेंगी, बशर्ते कि उन्हें उस राज्य की विधन सभा द्वारा ऐसे राज्य की दशा में जिसमें विधान परिषद है, उस राज्य के विधानमंडल के प्रत्येक सदन द्वारा उस आशय का संकल्प पारित करने से पहले ही विघटित नहीं कर दिया जाता है।
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