कार्बन एवं इसके यौगिक
रसायन की अन्य सभी शाखाओं का एक ओर और कार्बनिक रसायन को एक ओर रखने पर भी कार्बनिक रसायन अन्य सभी पर भारी पड़ता है। मात्रा 6 इलेक्ट्रॉनों वाला यह छोटा सा तत्व चमत्कारिक रूप से यौगिक बनाने तथा अभिक्रिया करने की क्षमता रखता है, जिसके कारणों की व्याख्या आगे की जाएगी। कार्बन के हजारों यौगिक अस्तित्व में हैं और दैनिक जीवन में प्रयोग में लाए जाते हैं। कार्बनिक यौगिकों के साथ प्रकृति में इसके अनेक स्थायी अपररूप भी उपस्थित हैं जो समान कार्बन परमाणुओं से बनने के बाद भी भौतिक और रासायनिक गुणों में जमीन-आसमान का अंतर रखते हैं। इस अध्याय में हम कार्बन का एक तत्व के रूप में सामान्य परिचय, उसके यौगिक बनाने की क्षमता, कार्बन के कुछ महत्वपूर्ण रासायनिक अभिक्रियाएँ, कार्बनिक यौगिक तथा कार्बनिक यौगिकों के उपयोग के बारे में जानेंगे।
कार्बन का सामान्य परिचय
आवर्त सारणी में स्थान- 14वाँ वर्ग एवं दूसरा आवर्त में रखा गया है।
निरूपण-इसको निरूपित करने के लिए ब् का प्रयोग किया जाता है।
परमाणु संख्या - 6
इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या - 6
संयोजी कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या- 4
भौतिक गुण
1. अधातु
2. कुछ अपररूप विद्युत के सुचालक, कुछ कुचालक वातावरणीय ताप पर ठोस अवस्था में रहता है।
3. कम क्रियाशीलता
तीन प्राकृतिक समस्थानिक तत्व-12, 13, 14, इनमें से 14, रेडियोएक्टिव है।
कार्बन के अनेक अपररूप पाये जाते हैं- जिनमें से मुख्य हैं- हीरा और ग्रेफाईट और फुलेरीन प्रमुख हैं।
कार्बन एवं इसके यौगिक
हीरा और ग्रेफाइट दोनों ही कार्बन के प्राकृतिक अवस्था में पाये जाने वाले अपररूप हैं, लेकिन इन दोनों के गुणों में इतना अधिक अंतर है कि इन्हें एक ही प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना हुआ मानने में भी संकोच हो सकता है।
हीरा और ग्रेफाईट में मुख्य अंतर
हीरा
1. पारदर्शी होता है
2. बहुत ही कठोर होता है
3. विद्युत चालकता बहुत कम होती है
4. दृढ़ त्रिआयामी संरचना होती है।
ग्रेफाईट
1. अपारदर्शी होता है।
2. नरम होता है।
3. विद्युत चालकता बहुत अधिक होती है।
4. षट्कोणीय संरचना होती है।
फुलेरीन
यह कार्बन का तीसरा अपररूप है। पुफलेरीन के तौर पर सबसे पहले ब्.60 की पहचान हुई थी। पफलेरीन में कार्बन के परमाणु इस प्रकार अवस्थित रहते हैं, फुलेरीन एक पुफटबॉल की तरह दिखाई देता है । इसका नामकरण अमरीकी आर्किटेक्ट बकमिंसटर फुलर द्वारा डिजाइन किए गए जियोडेसिक गुंबद से दिखने में समानता के कारण फुलेरीन किया गया।
कार्बन एवं इसके यौगिक
संरचनाः कार्बन के इन मुख्य अपररूपों के अतिरिक्त भी कार्बन प्रकृति में अनेक अवस्थाओं एवं रूपां में पाया
जाता है। जैसे-
1. कोयला: कोयला कई प्रकार का होता है। इसका उपयोग अधिकांशतः ईंधन और अपचायक के रूप में किया जाता है। कोयला-गैस और वायु अंगार गैस बनाने में इनका उपयोग किया जाता है।
2. काष्ठ कोयला: यह काला नरम और रन्ध्रदार तथा ठोस होता है, और जल में तैरता है। इसका उपयोग रोगाणुनाशी पदार्थ के रूप में और बारूद बनाने में भी किया जाता है। यह वायु की अनुपस्थिति में लकड़ी, वनस्पति तथा कुछ जान्तव पदार्थों को अपूर्ण रूप से जलाने पर प्राप्त होता है। यह कार्बन का अक्रिस्टलीय, काला, रन्ध्रमय रूप है। इसका उपयोग चारकोल परीक्षण, गैस-अवशोषण, विरंजन और इंर्धन के रूप में होता है।
3. अस्थि कोयला: यह अस्थियां के भंजक-आसवन द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग अधिकांशतः कार्बनिक पदार्थों और चीनी के विरंजीकरण के लिये किया जाता है।
4. काजल: यह नरम काला चूर्ण है, जिसे गीले आवरण पर जमाया जाता है। इसका उपयोग साधारण स्याही, मुद्रण की स्याही, काला रंग और पॉलिश तैयार करने में किया जाता है। यह कार्बन का सूक्ष्म विभाजित रूप है, जो प्राकृतिक गैस और द्रव हाइड्रोकार्बन के अपूर्ण दहन या तापीय अपघटन द्वारा बनाया जाता है। निर्माण की विधि के अनुसार इसके मुख्य भेद चैनल ब्लैक, फरनेस ब्लैक, थर्मल ब्लैक और लैम्प ब्लैक है। लैम्प ब्लैक नरम काला चूर्ण होता है, जिसे गीले आवरण पर जमाया जाता है।
5. कोल: इसका उपयोग अधिकांशतः घरेलू ईधन के रूप में किया जाता है, क्योंकि इसमें धुंआ नहीं रहता है। इसका उपयोग अपचायक के रूप में और इंर्धन गैस बनाने में किया जाता है।
6. गैस कार्बन: यह रवाहीन कार्बन है। चूंकि यह ताप और विद्युत का सुचालक है, इसलिए इसका उपयोग इलेक्ट्रोड बनाने में किया जाता है।
कार्बन के ऑक्सीकरण अवस्थाएँ
1. अकार्बनिक यौगिकों में
2. कार्बन मोनो ऑक्साइड में एवं अन्य धात्विक कार्बोनिल यौगिकों में।
किसी तत्व की ऑक्सीकरण अवस्था यह दर्शाती है कि वह तत्व कितने अन्य परमाणुओं के साथ संयोग कर सकता है, जैसे कार्बन की आक्सीकरण अवस्था $4 कहने का अर्थ है कि इसके संयोजी कोश में 4 इलेक्ट्रॉनों की कमी है और यह किसी अन्य परमाणु से 4 इलेक्ट्रॉन स्वीकार करने की प्रवृत्ति रखता है, इसी प्रकार
3. ऑक्सीकरण अवस्था का अर्थ है कि यह कार्बन परमाणु 2 इलेक्ट्रॉन स्वीकार करने की प्रवृत्ति रखता है।
इसी प्रकार ऑक्सीकरण अवस्थाएँ ऋणात्मक भी होती हैं। किसी तत्व के ऑक्सीकरण अवस्था के ऋणात्मक होने का तात्पर्य यह है कि वह दूसरे तत्व को इलेक्ट्रॉन देने की प्रवृत्ति रखता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि तत्व ऐसी प्रवृत्ति इलेक्ट्रॉन देने या ग्रहण करने कीद्ध क्यों रखते हैं?
कार्बन सहित अन्य सभी तत्वों की रासायनिक अभिक्रियाओं की प्रवृत्ति, उनकी क्रियाशीलता आदि उनके ऑक्सीकरण अवस्थाओं से प्रभावित होती है। जिसकी ऑक्सीकरण अवस्था जितनी अधिक होगी उसकी दूसरे तत्व से बंध बनाने की क्षमता उतनी ही अधिक होगी।
कार्बनिक यौगिक
सामान्यतः ऐसे यौगिक जिनमें कार्बन पाया जाता है, कार्बनिक यौगिक कहलाते हैं।
अपवाद स्वरूप कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बोनेट्स, कार्बन डाई ऑक्साइड एवं साइनाइड जैसे कुछ यौगिक अकार्बनिक यौगिक होते हैं।
कार्बन अन्य तत्वों की अपेक्षा बहुत अधिक मात्रा में यौगिकों का निर्माण करता है जिसके अनेक कारण हो सकते हैं-
1. यह अन्य कार्बन परमाणुओं के साथ लंबी श्रृंखला बना पाने में सक्षम होता है।
2. कार्बन की संयोजकता 4 होती है जिसके कारण यह अपनी श्रृंखला के साथ अन्य तत्वों से भी बंध बनाने में सक्षम होता है।
3. छोटे आकार के कारण यह द्विबंध एवं त्रिबंध भी बना सकता है और इसमें चक्र बनाने की भी क्षमता होती है।
सभी कार्बनिक यौगिकों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. संतृप्त कार्बनिक यौगिक
2. असंतृप्त कार्बनिक यौगिक
संतृप्त कार्बनिक यौगिक
1. वे कार्बनिक यौगिक जिनमें कार्बन के परमाणु आपस में एक बंध द्वारा जुड़े हो तथा अन्य तीनों संयोजकता किसी अन्य तत्व से आश्वस्त होता हो तो ऐसे कार्बनिक यौगिकों को संतृप्त कार्बनिक यौगिक कहा जाता है।
असंतृप्त कार्बनिक यौगिक
1. वे कार्बनिक यौगिक जिनमें कोई भी दो कार्बन परमाणु द्विबंध या त्रिबंध से जुड़े हाेते हैं, असंतृप्त कार्बनिक यौगिक कहलाते हैं।
2. इन यौगिकों में कार्बन परमाणुओं के बीच द्विबंध और त्रिबंध नहीं होता।
3. इनकी क्रियाशीलता संतृप्त कार्बनिक यौगिकों की अपेक्षा अधिक होती है, क्याोकि उनमें अपना बहुबंध तोड़ कर संतृप्तता प्राप्त करने की प्रवृत्ति हाेती है।
उदाहरण- ब्यूटेन, प्रोपेन, आदि। उदाहरण- ब्यूटिन, प्रोपीन आदि।
प्रकार्यात्मक समूह
कुछ तत्व कार्बन के यौगिकों में से हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित कर उसका स्थान लेने की क्षमता रखते हैं, ऐसे तत्व विषम परमाणु कहलते हैं। इन तत्वों की कार्बन के साथ आबद्धता हाइड्रोजन की अपेक्षा अधिक होती है, इसलिए वो उसे हटाकर उसका स्थान ले लेते हैं। कुछ यौगिको में ये विषम तत्व पाये जाते हैं और और कार्बन की विभिन्न श्रृंखलाओं के साथ जुड़कर विभिन्न प्रकार के यौगिकों का निर्माण करते हैं। ये यौगिक प्रकार्यात्मक समूह कहलाते हैं। कार्बन की श्रृंखला में परिवर्तन प्रकार्यात्मक समूह के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
कार्बन एवं इसके यौगिक
ऑक्सीजन एक प्रबल विषम तत्व होता है, यह चार प्रकार के प्रकार्यात्मक समूह में एल्कोहल, ऐल्डिहाइड, कीटोन, कार्बोक्सलिक अम्ल उपस्थ्ति रहता है। नाइट्रोजन भी विषम तत्व होता है जो प्रकार्यात्मक समूह एमीनो में उपस्थित रहता है। इसी प्रकार हैलोजन भी विषम तत्व होते हैं
कार्बनिक यौगिक एवं उनके प्रयोग
मीथेन : इसका प्रयोग प्राकितक गैस के रूप में ईंधन में, काला कार्बन बनाने में जिसका उपयोग छापाखाने में, मिथाइल एल्कोहल बनाने में किया जाता है।
इथेन : इसका प्रयोग गैसीय ईंधन के रूप में, रेफ्रिजरेटर में किया जाता है।
इथिलीन : का प्रयोग कच्चे फलो को पकाने व उनके संरक्षण में, विषैली मस्टर्ड गैस बनाने में, कृत्रिम रबर एवं पोलीथीन प्लास्टिक बनाने में किया जाता है।
एसीटीलीन : इसका प्रयोग धातुओं को जोड़ने काटने के लिए ऑक्सीजन के साथ ऑक्सीऐसिटीलीन ज्वाला बनाने में, निओप्रीन नामक कृत्रिम बनाने में, पोली-विनायल-क्लोराइड बनाने में किया जाता है।
क्लोरोफार्म : इसका प्रयोग शल्य क्रिया में निश्चेतक के रुप में, जन्तुओं व पौधों से प्राप्त पदार्थों के संरक्षण व सुगंधित पदार्थ के रूप में किया जाता है।
कार्बन टेट्रक्लोराइड : इसका प्रायेग पाईरीन के नाम से यह अग्निशामक के रूप में, औद्योगिक विलायक के रूप में, कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है।
मिथाइलएल्कोहल : इसका प्रयोग गैसोलीन में 20 प्रतिशत मिथाईंल एल्कोहल मिलाकर ईंधन के रूप में, इथाईल एल्कोहल में मिलाकर इथाईल एल्कोहल को अपेय बनाने में, वार्निश एवं तेल उद्योग में विलायक के रुप में किया जाता है।
ईंथाइल एल्कोहल : इसका प्रयोग जैविक सूक्ष्म जीवों के संरक्षण में, शराब एवं दवाओं में प्रयुक्त हिंचर बनाने में किया जाता है।
ईथर : इसका प्रयोग इथाईल एल्कोहल में मिलाकर इसे ईंधन के रूप में, विलायक एवं शीतलक के रुप में किया जाता है।
ग्लिसरिन : इसका प्रयोग नाइट्रोग्लिसिरीन जैसे विस्फोटक बनाने में, ठण्डे मरहम श्रंश्गार सामग्री बनाने में किया जाता है।
फार्मिक अम्ल : इसका प्रयोग फलों व रसों को सुरक्षित रखने में, चमड़ा उद्योग व रबड़ उद्योग में रबर के स्कन्दन में किया जाता है।
एसीटिक अम्ल CH3COOH
ग्लूकोज C6H12O6
बेन्जोइक अम्ल: इसका प्रयोग सिरका बनाने में, औषधि एवं रंग बनाने में, विलायक के रूप में किया जाता है। इसका प्रयोग मुरब्बों व फलों के रस को सुरक्षित रखने में, रोगियों के शक्ति-वर्धक के रूप में किया जाता है। इसका प्रयोग भोज्य पदार्थों के संरक्षण में, अनेक प्रकार की दवायें बनाने में किया जाता है।
फनोल C6H5OH: इसका प्रयोग बेकेलाइट के निर्माण में, जीवाणुनाशक के रूप में किया जाता है।
क्लोरोबेन्जीन: C6H5CL इसका प्रयोग डी.डी.टी. कीटनाशी बनाने में, फिनोल के औद्योगिक उत्पादन में किया जाता है।
ब्लीचिंग पाउडर : इसका प्रयोग रोगाणुनाशक के रूप में जल को शुद्ध करने में, विरंजक के रूप में किया जाता है।
यूरिया : इसका प्रयोग उर्वरक के रूप में, नाइट्रोसेल्यूलोज जैसे विस्फोटक बनाने में किया जाता है।
बेन्जीनC6H6: इसका प्रयोग तेल वसा के विलायक के रूप में, शुष्क धुलाई में किया जाता है।
सारांश
1. कार्बन की परमाणु संख्या- 6 है।
2. इसके कुछ अपररूप विद्युत के सुचालक (ग्रेफाईट), कुछ कुचालक होते हैं (हीरा)
3. कार्बन के तीन प्राकृतिक समस्थानिक तत्व- 12, 13, 14, सामान्यतः पाये जाते हैं, इनमें से 14, रेडियोएक्टिव है।
4. पुफलेरीन के तौर पर सबसे पहले ब्.60 की पहचान हुई थी।
5. कार्बन की +4 ऑक्सीकरण अवस्था इसके अकार्बनिक यौगिकों में और +2 कार्बन मोनो ऑक्साइड में एवं अन्य धात्विक काबोर्निल यौगिकों में पायी जाती है।
6. अपवाद स्वरूप कार्बन मोनो ऑक्साइड कार्बाइड्स, काबोर्नेट्स, कार्बन डाई ऑक्साइड एवं साइनाइड जैसे कुछ यौगिक अकार्बनिक यौगिक हैं।
7. वे कार्बनिक यौगिक जिनमें दो कार्बन परमाणुओं के बीच द्विबंध या त्रिबंध बना होता है, असंतृप्त कार्बनिक यौगिक कहलाते हैं।
8. असंतृप्त कार्बनिक यौगिकों की क्रियाशीलता संतृप्त कार्बनिक यौगिकों की अपेक्षा अधिक होती है, क्योकि उनमें अपना बहुबंध तोड़ कर संतृप्तता प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है।
9. कार्बन की श्रृंखला में परिवर्तन प्रकार्यात्मक समूह के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
10. एथिल एल्कोहल ही पीने वाला शराब होता है।
11. ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग रोगाणुनाशक के रूप में जल को शुद्ध करने में, विरंजक के रूप में किया जाता है।
12. यूरिया का प्रयोग उवर्रक के रूप में, नाइट्रोसेल्यूलोज जैसे विस्फोटक बनाने में किया जाता है।
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