पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास | Geological History of the Earth |
पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास
उल्का पिण्डों एवं चंद्रमा के चट्टानों के अध्ययन से हमारी पृथ्वी की आयु 4.6 अरब वर्ष निर्धारित की गई है। पृथ्वी पर सबसे प्राचीन पत्थर के नमूनों के रेडियोधर्मी तत्वों के परीक्षण से उसके 3.9 बिलियन वर्ष पुराना होने का पता चला है। सर्वाधिक प्राचीन चट्टान आस्ट्रेलिया के जैक पहाड़ी पे पाया गया जबकि द्वितीय प्राचीन चट्टान भारत के उड़ीसा प्रान्त के क्योंझर जिले में मिला जो लगभग 4.2 अरब पुराना है। रेडियोसक्रिय पदार्थों के अध्ययन के द्वारा पृथ्वी की आयु की सबसे विश्वसनीय व्याख्या हो सकी है।
पियरे क्यूरी एवं रदरफोर्ड ने इनके आधार पर पृथ्वी की आयु दो से तीन अरब वर्ष अनुमानित की है। पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास की व्याख्या का सर्वप्रथम प्रयास प्फांसीसी वैज्ञानिक कास्ते-द-बपफन ने किया। वर्तमान समय में पृथ्वी के इतिहास को कई कल्प में विभाजित किया गया है। ये कल्प पुनः क्रमिक रूप से युगों में व्यवस्थित किए गए है। प्रत्येक युग पुनः छोटे उपविभागों में विभक्त किया गया है जिन्हें ‘शक’ कहा जाता है। प्रत्येक शक की कालावधि निर्धारित की गई है एवं जीवों तथा वनस्पतियों के विकास पर भी प्रकाश डाला गया है।
आद्य कल्प
इसको दो भागों में बांटा गया है-
1. आर्कियन काल
जीवाश्मो का पूर्णत अभाव।
प्राग्जैविक काल भी कहा जाता है।
ग्रेनाइट और नीस की प्रधानता।
कनाडियन, पेफनोस्केडिंया शील्ड इसी काल में बने।
2. प्रीकैम्ब्रियन काल
रीढ़विहीन जीवों का प्रादु र्भाव।
गर्म सागरा में नर्म त्वचा वाले रीढ़ विहीन जीव एव रीढ़ युक्त।
स्थल भाग जीव रहित।
अरावली पर्वत, धारवाड़ चट्टानों का निर्माण।
पुराजीवी महाकल्प
इसे प्राथमिक युग भी कहा जाता है। इस कालखण्ड में समुद्र से जीवों का स्थल पर पदार्पण हुआ। इसके
निम्न 6 उपभाग हैं-
1. कैम्ब्रियन काल
प्रथम बार स्थल भागों पर समुद्रों का अतिक्रमण।
प्राचीनतम अवसादी शैलों का निर्माण
भारत में विध्यांचल पर्वतमाला का निर्माण।
पृथ्वी पर वनस्पति तथा जीवों की उत्पत्ति, जीव बिना रीढ़ की हड्डी वाले।
पेरीपेटस; एनीलिडा एवं आर्थोपोडा संशेजक जन्तुद्ध का जीवाश्म इसी काल के चट्टानों में पाया जाता है।
समुद्रों में घासों की उत्पत्ति इसी काल में।
2. आर्डोविसियन काल
सागरीय वनस्पतियों का विस्तार।
समुद्र में रेंगने वाले जीव।
स्थल भाग जीवविहीन रहा।
3. सिल्यूरियन काल
रीढ़ वाले जीवों का सर्वप्रथम अविर्भाव।
समुद्र में मछलियों की उत्पत्ति।
‘रीढ़ वाले जीवों का काल’ भी कहा जाता है।
प्रवाल जीवों का विस्तार।
पहली बार पौधों का उद्भव, पौधे पत्ते विहीन, एवं आस्ट्रेलिया में उत्पन्न।
स्कैंडिनेविया, स्कॉटलैण्ड के पर्वतों का निर्माण इसी काल में हुआ जिसे कैलिडोनियन हलचल कहा जाता है।
4. डिवोनियन काल
पृथ्वी की जलवायु समुद्री जीवों के अनुकूल, मछलियों के सर्वाधिक अनुकूल।
शार्क मछली का अविर्भाव।
मत्स्य युग के नाम से जाना जाता है।
उभयचर जीवों की उत्पत्ति।
पफर्न वनस्पतियों की उत्पत्ति।
कैलिडोनियन पर्वतकीरण।
ज्वालामुखी क्रियाएं सक्रिय हुईं।
पौधे 40 फीट तक पहुंचे।
5. कार्बोनीपेफरस युग
इस काल में उभयचरों का कापफी विस्तार हुआ। इसलिए इसे उभयचरों का युग कहा जाता है।
रेंगने वाले जीव स्थल पर आविर्भाव।
इस काल में पौधे 100 पफीट तक पहुंचे।
बड़े वृक्षों वनस्पतियों का काल कहा गया।
गोंडवाना क्रम की चट्टानों का निर्माण।
कोयले का व्यापक निक्षेप मिला।
6. पर्मियन युग
हर्सीनियन पर्वतीकरण का काल।
भ्रंशों के निर्माण के कारण- ब्लैक पफॉरेस्ट व वास्जेज जैसे भ्रंशोत्थ पर्वत निर्माण।
स्पेनिश, मेसेटा, अल्ताई, तिएनशान, अप्लेशियन जैसे पर्वतों का निर्माण।
स्थल पर जीवों एवं वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों का विकास।
आंतरिक झीलों के वाष्पीकरण से पोटाश भण्डारों का निर्माण इसी युग में।
मध्यजीवी महाकल्प
इसे सरीसृपों का युग कहा जाता है। इसके तीन उपभाग है-
1. ट्रियासिक युग
बड़े-बड़े रेंगने वाले जीवों का विकास, रेंगने वाले जीवों का काल।
आर्कियोप्टेरिक्स की उत्पत्ति।
तैरने वाले लाबस्टर ;केकड़ा समूह का प्राणीद्ध का उद्भव।
स्तनधारी भी उत्पन्न होने लगे तथा मांसाहारी मत्स्यतुल्य रेप्टाइल्स भी उत्पन्न।
रेप्टाइल्स में भी स्तनधारियों प्रोटीथीरिया की उत्पत्ति हो गयी।
2. जुरैसिक युग
मगरमच्छ के समान मुख और मछली के समान धड़ वाले जीव।
डायनासोर रेप्टाइल का विस्तार तथा लॉबस्टर ;केकड़ा समूह का प्राणीद्ध बढ़ गए।
जलचर, स्थलचर, नभचर तीनों का आविर्भाव।
जूरा पर्वत का निर्माण।
पुष्पयुक्त वनस्पतियां इसी युग में आईं।
3. क्रिटेशियस युग
उड़ने वाले सरीसृप से प्रथम पक्षी आर्कियोप्टेरिक्स की उत्पत्ति इसी युग में हुयी।
एंजियोस्पर्म ;आवृत्तबीजी पौधों का विकास आरम्भ।
बड़े-बड़े कछुओं का उद्भव।
मैग्नेलिया व पोपार जैसे शीतोष्ण पतझड़ वन के वृक्ष का विकास।
आलास्का, कनाडा, मैक्सिको, ब्रिटेन के डोबर क्षेत्रा, आस्ट्रेलिया में खड़िया मिट्टी का जमाव।
रॉकी व एण्डीज पर्वत की उत्पत्ति आरम्भ।
भारत में दक्कन ट्रैप व काली मिट्टी का निर्माण हुआ।
डॉयनासोर समाप्त
नवजीवी महाकल्प
इसे स्तनियों, कीटां एवं आवृत्तबीजी पादप का युग भी कहा जाता है। विश्व के सभी मोड़दार पर्वतों की
उत्पत्ति, आल्पस, हिमालय, रॉकी, एंडीज इसी महाकल्प में हुई। इसके पाँच उपभोग हैं-
1. पैल्योसीन काल
अल्पाइन पर्वतीकरण।
स्थल पर स्तनधारियों का विस्तार।
सर्वप्रथम स्तनपायी जीव एवं पुच्छहीन बंदरों का अविर्भाव इसी काल में हुआ।
2. इओसीन काल
स्थल पर रेंगने वाले जीव प्रायः विलुप्त।
वृहद् हिमालय का निर्माण प्रारम्भ हुआ। इसी समय हिन्द महासागर तथा अटलांटिक महासागर का विकास हुआ।
प्राचीन बंदर व गिब्बन म्यांमार में उत्पन्न।
हाथी, घोड़ा, रेनोसेरस, सुअर के पूर्वजों का अविर्भाव इसी काल में हुआ।
3. ओलीगोसीन काल
बिल्ली, कुत्ता, भालू आदि की उत्पत्ति।
पुच्छहीन बंदर जिसे मानव का पूर्वज कहा गया।
वृहत् हिमालय का निर्माण इसी काल में।
आल्पस पर्वत का निर्माण इस काल में प्रारम्भ हो गया।
4. मायोसीन काल
पेंग्विन का अविर्भाव इसी काल में अंटार्कटिका में हुआ।
बड़े आकार के शार्क मछली, प्रोकानसत बंदर।
जल पक्षी- हंस, बत्तख।
हाथी का विकास।
मध्य एवं लघु हिमालय की उत्पत्ति इसी काल में।
5. प्लायोसीन काल
इस काल में वर्तमान महासागरों तथा महाद्वीपों का स्वरूप प्राप्त हुआ। ब्लैक सागर, उत्तरी सागर,
कैस्पियन सागर, टेथिस भू-सन्नति में अवसादों के जमाव से उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण।
बड़े स्तनपायी प्राणियों की संख्या में।
शार्क का विनाश हो गया।
आधुनिक स्तनपायियों का अविर्भाव।
शिवालिक की उत्पत्ति।
मानव की उत्पत्ति इसी काल में हुई थी।
नूतन महाकल्प
इसे चतुर्थक युग भी कहा जाता है। प्लीस्टोसीन व होलोसीन इसके दो उपभाग हैं-
1. प्लीस्टोसीन काल
यूरोप में गुंज, मिण्डल, रिस, उर्स चार हिमयुग देखे गये।
हिमचादर पिघलने लगे स्कैंडिनेवियन क्षेत्रा की उंफचाई में निरंतर वृ( हुई।
पृथ्वी पर उड़ने वाले पक्षियों का अविर्भाव।
मानव तथा अन्य स्तनपायी जीव वर्तमान रूप में इसी काल में।
2. होलोसीन काल
तापमान में वृध्दि |
विश्व की वर्तमान दशा |
सागरीय जीवों को वर्तमान अवस्था प्राप्त |
स्थल पर मनुष्य ने कृषि तथा पशुपालन प्रारंभ कर दिया।
मेघालयन - यह क्वार्टरनरी कल्प का नवीनतम शक है जो मात्र 4200 वर्ष प्राचीन है। इस युग का प्रारंभ वैश्विक स्तर पर जलवायु परिमार्जन के साथ हुआ। लगातार 200 वर्ष तक सूखा ने मानव सभ्यता की प्राचीन संस्कृतियों - नील घाटी सभ्यता, दजला-फरात घाटी सभ्यता व सिंधु घाटी सभ्यता का नाश कर दिया।
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