भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ
भारतीय संस्कृति अति विशिष्ट है, भारतीय संस्कृति की कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो विश्व के अन्य देशों की संस्कृतियों में दृष्टिगत नहीं होती जिसका कारण भारत की भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियाँ है, जो अन्य देशों से से इसे पृथक करती है। धर्म, अध्यात्म, साहित्य एवं ललित कलाओं जैसे विशिष्ट तत्वों के कारण भारतीय संस्कृति ने विश्व के देशों में अपनी महत्ता को बनाये रखा है। संक्षेप में भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं-
प्राचीनता एवं प्रगतिशीलता
भारतीय संस्कृति का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसने सभ्यता के अति प्राचीन काल से ही विश्व में अतीव आदरपूर्ण स्थान प्राप्त किया। जहाँ यूनान, सुमेर और रोम जैसी प्राचीन संस्कृतियाँ पूर्णतया विलुप्त हो गयीं, वहीं भारतीय संस्कृति आज भी अस्तित्व में है और सारे विश्व के लिए एक प्रतिमान स्थापित किया है। भारतीय संस्कृति की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इसकी प्राचीन कड़ियाँ आधुनिक भारत तक एक सूत्र में बंधी रहीं, जबकि विश्व के अन्य प्राचीन संस्कृतियों के अवशेष मात्र यत्र-तत्र प्राप्त होते हैं।
धार्मिक विविधता एवं उनके मध्य सामन्जस्य
प्राचीन काल से ही भारत में अनेक धर्म अपने अस्तित्व में रहे हैं। इन विभिन्न धर्म मानने वालों के मध्य परस्पर सहिष्णुता बनी रही, जबकि अन्य देशों में धर्म के नाम अनेक युद्ध और संघर्ष हुए। भारतीय संस्कृति में धर्मान्धता एवं संकुचित मनोवृत्ति नहीं मिलती। इसका कारण यह है कि यहाँ के अनेक संतों, मनीषियों एवं शासकों ने सहिष्णुता की भावना को बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में धार्मिक विद्वेष के लिए कोई स्थान नहीं है।
समन्वयवादिता
भारतीय संस्कृति में समन्वयवादिता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। भारतीय मनीषियों ने अतिवादी विचारधाराओं का विरोध किया है तथा मध्यम मार्ग का उपदेश दिया है। भारतीय संस्कृति में अतिशय आसक्ति और विरक्ति दोनों त्याज्य हैं। इसमें आध्यात्मिकता एवं भौतिकता का सुन्दर समन्वय मिलता है, जबकि विश्व की अन्य संस्कृतियों में इस तरह की समन्वयवादिता नहीं मिलती है। भारत के धर्म गुरूओं, उपदेशको, धार्मिक ग्रन्थों आदि ने भी समन्वयवादिता पर अत्यधिक बल दिया है जैसे महात्मा बुद्ध के उपदेशों में समन्वयवादिता पर जोर दिया गया है, गीता में भी ज्ञान, कर्म एवं भक्ति के बीच समन्वय स्थापित किया गया गया है जो सभी के लिए अनुकरणीय है, सम्राट अशोक ने पारस्परिक मेल-मिलाप, प्रीति एवं सहानुभूतिपूर्ण एकत्व को ही विभिन्न वर्गों के लिए जीवन का श्रेष्ठ मार्ग घोषित किया है। वस्तुतः ‘समवाय’ अथवा समन्वय की अवधारणा ने ही भारतीय संस्कृति को एकता के सूत्र में आबद्ध होने के मार्ग पर अग्रसर किया है।
नैतिकता
नैतिकता भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पक्ष रहा है। यहाँ नैतिकता एवं सदाचार को प्राचीन काल से ही सर्वोपरि स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में निर्धारित नैतिकता के मानदण्ड संसार के सभी मनीषियों की विचार-कसौटी पर खरे उतरते हैं। वस्तुतः भारतीय संस्कृति के प्रमुख तत्व त्याग, तप, संयम, सहनशीलता, बड़ों के प्रति सम्मान का भाव, विश्व कल्याण का भाव आदि नैतिकता के ही मार्ग हैं।
आध्यात्मिकता
आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता भारतीय संस्कृति के प्राण है जिन्होंने इसके सभी अंगों को प्रभावित किया है। प्राचीन भारतीयों ने भौतिक सुखों का महत्व समझते हुए भी उन्हें अपनी जीवन पद्धति में गौण रखा है। प्राचीन भारतीय समाज में पुरूषार्थों का विधान एवं आश्रम व्यवस्था का प्रतिपादन मनुष्य की आध्यात्मिक साधना के ही प्रतीक हैं। आत्मा और परमात्मा के विषय में जितना भारतीय विचारकों ने मनन किया है, संभवतः उतना अन्य किसी ने नहीं। अध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति का एक प्रधान तत्व रहा है जिसने उसके सभी पक्षों को प्रभावित किया है। कला भी इसका अपवाद नहीं है। इसके सभी पक्षों-वास्तु या स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला आदि के ऊपर इसका व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है। वास्तव में प्राचीन काल से ही भारतीय आध्यात्म और दर्शन में विशेष रूचि रखते आए हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में धार्मिकता एवं आध्यात्मिकता का प्राधान्य रहा है।
सार्वभौमिकता
भारतीय संस्कृति में सार्वभौमिकता पर विशेष बल दिया गया है। वैदिक काल से ही भारतीय मनीषियों ने सम्पूर्ण विश्व को एक मानकर ‘विश्व बन्धुत्व’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसे उदात्त विचारों का उद्घोष करते हुए सार्वभौमिकता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसमें अपनी उन्नति के साथ ही साथ समस्त विश्व के कल्याण की कामना की गयी है। सार्वभौमिकता की यह भावना भारतीय साहित्य एवं दर्शन में स्थान-स्थान पर मुखरित हुई है तथा जो किसी अन्य संस्कृति में दृष्टिगोचर नहीं होती।
नारी सम्मान
भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। प्राचीन भारतीय साहित्य में नारी को देवी तुल्य माना गया है। वैदिक एवं संस्कृत साहित्य में माँ एवं पत्नी के महत्व का विशद वर्णन किया गया है। भारतीय संस्कृति में माँ को ईश्वर के समकक्ष स्थान दिया जाता है और पत्नी के लिए ‘सहगामिनी’ और ‘अर्धांगिनी’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। भारतीय संस्कृति के आरंभ से ही नारी को सम्मान प्रदान किया जाता रहा है। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि सदैव ही नारी भारतीय संस्कृति के केन्द्र में रही है।
अनेकता में एकता
अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। भारत एक विशाल देश है जहाँ भौगोलिक एवं सामाजिक स्तर की अनेक विषमतायें दृष्टिगोचर होती हैं। एक ओर उत्तुंग शिखर हैं तो दूसरी ओर नीचे मैदान हैं, एक ओर अत्यंत उर्वर प्रदेश तो दूसरी ओर विशाल रेगिस्तान हैं। कुछ भागों में घनघोर वर्षा होती है तो कुछ भाग में नाममात्र की वर्षा होती है। इसी तरह भारत में विभिन्न धर्मों एवं जातियों के लोग निवास करते हैं, जो भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलते हैं। इनके रहन-सहन के ढंग भी अलग-अलग हैं। भौगोलिक रूप से भारत एक देश न होकर छोटे-छोटे खण्डों का विशाल समूह है जहां प्रत्येक की अपनी अलग-अलग संस्कृति है। किन्तु इन भौगोलिक एवं सामाजिक विविधताओं, भाषा, प्रथाओं तथा धार्मिक विभिन्नताओं के बीच हिमालय से कन्या कुमारी तक एकता की एक अविच्छिन्न कड़ी है |
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