पर्यावरण का मानव जीवन में क्या महत्व है स्पष्ट कीजिए explain The importance of Environment in human life?
पर्यावरण का महत्त्व
सम्पूर्ण पर्यावरण में तीन प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षत होता हैं- पर्यावरण के तत्वों की अन्योन्याश्रितता, सीमित क्षमता, तथा जटिल सम्बन्ध। प्रकृति के निर्माण में असंख्य तत्वों का योगदान होता है। ये सभी तत्व एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, इन सभी तत्वों की मात्रा सीमित एवं सुनिश्चित होती है तथा इनका एक-दूसरे से केवल सरल और प्रत्यक्ष सम्बन्ध ही नहीं होता बल्कि अप्रत्यक्ष एवं जटिल सम्बन्ध भी होता है।
अन्योन्याश्रितता के कारण ही किसी प्राणी की सत्ता अन्य असंख्य प्राणियों के अस्तित्व पर निर्भर करती है। वस्तुतः इस दृष्टि से मानव स्वतंत्र नहीं है। यदि पेड़-पौधे ऑक्सीजन उत्पन्न करना बन्द कर दें तो मनुष्य तथा जीव-जन्तु बच नहीं पायेंगे। पेड़-पौधों के विभिन्न अवयन मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं और मिट्टी के जीवांश पेड़-पौधों का पोषण करते हैं। पेड़-पौधों भी अपने में स्वतंत्र नहीं है।
मिट्टी के बैक्टीरिया एवं सूक्ष्म जीवन उसे लाभ पहुँचाते हैं। वृक्ष भी असंख्य जीव घटकों के कारण ही जीवित है। पर्यावरण की दूसरी विशेषता सीमित क्षमता है। हर प्राणी एवं पदार्थ की संख्या एवं अनुपात सुनिश्चित तथा सीमित है। पौधे निर्धारित मात्रा में सूर्य की किरणें ग्रहण करते है और एक निर्धारित सीमा तक ही ऑक्सीजन पैदा करते है।
उपभोक्ताओं की संख्या और उपयोग की मात्रा जब तक उत्पादन के अनुरूप रहती है तब तक व्यवस्था ठीक चलती है लेकिन उत्पादन से उपभोग की मात्रा बढ़ जाने पर असंतुलन बढ़ जाय तो ध्रुव प्रदशों की बर्पफ पिघलने लगेगी जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और इस जलस्तर की वृद्धि के कारण मैदानी क्षेत्र जलमग्न भी हो सकतें है।
पर्यावरण में सभी तत्त्वों और जीवो की अन्योन्याश्रिता की विशेषता ने ही सम्बन्धें को जटिल बना दिया है। कोई भी तत्व जो परम तत्व नहीं वह स्वतंत्र नहीं अर्थात पर्यावरण में दृश्यमान वस्तु का अस्तित्व दूसरे तत्व में तथा दूसरे का बदले में निर्भर है। अतः एक प्रभावित होगा तो सभी स्वतः ही प्रभावित होंगे।
इस प्रकार पर्यावरण की उपर्युक्त तीनों विशेषताएँ स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सभी स्तरों पर विद्यमान हैं। इन तीनो के कारण ही सम्पूर्ण पर्यावरण में संतुलन बना रहता है
किन्तु विकास की प्रक्रिया में जो पर्यावरण ह्रास हुआ है और प्रकृति में जो असन्तुलन उत्पन्न हुआ है उससे हम सभी विदित है।
पिछले 50 वर्षों में विश्व की बढ़ती जनंसख्या नगरीकरण औद्योगिकरण तथा अत्यधिक प्राविधिक सक्रियता के कारण
पारिस्थितिकी ह्रासोन्मुख परिवर्तन प्रारम्भ हो चुका है। अतः पर्यावरण का अध्ययन तथा उसके सरंक्षण की क्रियाएँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है।
पर्यावरण के अध्ययन से हमे पर्यावरण में अंधाधुंध प्रदूषकों के छोड़े जाने के प्रति भी संरक्षण और महत्व के बारे में भी ज्ञान प्राप्त होता है।
वर्तमान समय मेंबहुत से पर्यावरणीय मुद्दे है जो दिन-ब-दिन जटिल होते जा रहे है और अन्ततः पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पर्यावरणीय अध्ययन निम्न कारणों से अति महत्वपूर्ण बन गया है-
पर्यावरण मुद्दे अन्तर्राष्ट्रीय होने के नाते- इस बात को अच्छी तरह से पहचाना गया है कि पर्यावरणीय मुद्दे जैसे ग्लोबल वार्मिंग, आजोन क्षरण, अम्ल वर्षा, समुद्री प्रदूषण और जैव विविध्ता केवल राष्ट्रीय मुद्दे नहीं है बल्कि वैश्विक मुद्दे है और इसलिए इन मुद्दों का अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों और सहयोग से हल निकाला जाना चाहिए-
विकास के परिणाम उत्पन्न समस्याएं- विकास के परिणाम स्वरूप नगरीकरण, औद्योगिकरण, परिवहन तंत्र, कृषि और आवास को जन्म दिया, हॉलाकि विकसित देश इस चरण से बाहर हो गये है। उत्तरी गोलार्द्ध की दुनिया ने अपने पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए गंदे कारखानों को दक्षिण में स्थानांतरित करने में कामयाब रहा। जब पश्चिम अपने को विकसित कर रहा था तो पर्यावरणीय समस्याओ को नजरअंदाज किया। जाहिर है इस प्रकार के पथ पर विकासशील देश है जो न तो व्यवहारिक है और न वाह्यनिय है।
प्रदूषण में विस्फोटक वृद्धि- कुल वैश्विक जनसंख्या में से प्रत्येक सातवां व्यक्ति भारत में निवास करता है। दुनिया की आबादी का 16 प्रतिशत और 2.4 प्रतिशत भू-क्षेत्र जहाँ भूमि सहित सभी प्राकृतिक संसाध्नों पर भारी दबाव है।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि मिट्टी के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा है, उसके सक्ष्म पोषक तत्वों में कमी, कार्बनिक पदार्थ, लवणता और संरचना में भारी क्षति हुई है।
एक वैकल्पिक समाधन की आवश्यकता- यह विकासशील देशो के लिए आवश्यक है कि वैकल्पिक लक्ष्य के लिए वैकल्पिक मार्ग की खोज करे।
हमे निम्न रूप से एक लक्ष्य की आवश्यकता हैः
1. विकास का एक ऐसा सच्चा लक्ष्य जो पर्यावरणीय दृष्टि से संपोषणीय भी हो।
2. हमारी पृथ्वी के सभी नागरिको के लिए आम लक्ष्य।
3. विकासशील देशों को ऐसे लक्ष्य से दूरी बनानी होगी जो अत्यधिक उपयोग और अपत्ययी समाज का निर्माण करे जैसे कि विकसित देशो में हुआ है।
4. मानवता को विलुप्ती से बचाने की आवश्यकता- मानवता को विलुप्तता से बचाना हमारा कर्त्तव्य है। विकास के नाम पर, हमारी गतिविधियाँ से पर्यावरण का निर्माण तो होता है लेकिन जैवमण्डल जर्जर हो जाता है।
5. विकास के लिए उचित योजना की आवश्यकता- हमारा अस्तित्व संसाधनो के उपभोग प्रसंस्करण और उत्पादों के उपयोग पर निर्भर करता है इसलिए हमे अपने विकास के लिए ऐसी योजनाओं को बनाना चाहिए जो पर्यावरण का भी विकास करे और पारिस्थितिकी के अनुकूलता के साथ उनका भी अस्तित्व बनाये रखे।
आर.मिर्जा रिपोर्ट- इन्होंने पारिस्थितिकी को चार आधारभूत सिद्धान्त के तहत मान्यता दीः
1. होलिज्म
2. पारिस्थितिकी तंत्र
3. उत्तराधिकार
4. वार्तालाप
होलिज्म को पारिस्थितिकी का मूल आधर माना गया है।
आर. मिर्जा ने पर्यावरण प्रबन्ध्न के लिए चार आधरो को मान्यता दी है जो निम्न हैः
1. मानवीय क्रियाकलापों का पर्यावरण पर प्रभाव।
2. मूल्य प्रणाली।
3. संपोषणीय विकास के लिए योजना और डिजाइन।
4. पर्यावरण शिक्षा।
इन विचारों को ध्यान में रखते हुए भारत ने पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में संपोषणीय विकास योजना बनाने के लक्ष्य में अपना योगदान दिया। ब्राजील की राजधानी रिया-डी-जिनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन 1992 में भी इसे उल्लेखित किया गया।
FAQ
पर्यावरण अध्ययन का महत्व क्या है?
पर्यावरण शिक्षा एक पुनीत कार्य है, जिसे करके एवं उसके मार्ग पर चलकर वर्तमान के साथ भविष्य को सुंदर बना सकते हैं, मानव की अनेक त्रासदियों से रक्षा कर सकते हैं, प्राकृतिक आपदाओं को कम कर सकते हैं, विलुप्त होते जीव-जंतुओं व पादपों की प्रजातियों की रक्षा कर सकते हैं और जल, वायु एवं भूमि को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं
पर्यावरण का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपभोग और तीव्र दोहन हो रहा है जिसका परिणाम मृदा निम्नीकरण, जैव विविधता में कमी और वायु, जल स्रोतों के प्रदूषण के रूप में दिखाई पड़ रहा है। अनवीकरणीय ऊर्जा के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है।
पर्यावरण का महत्व विषय पर 8 10 वाक्यों में निबंध लिखिए?
1) पर्यावरण वह परिवेश है जहां हम रहते हैं, जीवित रहते हैं और फलते-फूलते हैं।
2) सभी सजीवों के अस्तित्व के लिए स्वच्छ वायु व वातावरण परम आवश्यक है।
3) स्वच्छ पर्यावरण सभी जीवित प्रजातियों के विकास और पोषण में मदद करता है।
4) पर्यावरण हमारे जीवन की सभी मूलभूत चीजें प्राप्त करने में सहायता करता है।
पर्यावरण का मानव समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है कोई तीन प्रभाव बताइए?
पर्यावरण पर मानव प्रभाव या पर्यावरण पर मानववंशीय प्रभाव में ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरणीय गिरावट (जैसे सागर अम्लीकरण), बड़े पैमाने पर विलुप्त होने और जैव विविधता हानि सहित, मानव द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से होने वाले जैव-वैज्ञानिक वातावरण और पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों में परिवर्तन शामिल हैं
पर्यावरण का क्या अर्थ है पर्यावरण का मानव के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
पर्यावरण स्थितियों का कुल योग है जिसमे एक जीव को जीवित रहना पड़ता है या जीवन प्रक्रिया को बनाए रखना होता है| यह जीवित जीव की वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है। इसके प्रमुख घटक मिट्टी, पानी, हवा, जीव और सौर ऊर्जा हैं। पर्यावरण ने एक आरामदायक जीवन जीने के लिए हमें सभी संसाधन प्रदान किए हैं ।
पर्यावरण का मानव जीवन में क्या महत्व है स्पष्ट कीजिए explain The importance of Environment in human life?
मनुष्य के स्वस्थ जीवन में पर्यावरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पर्यावरण एकमात्र घर है जो मनुष्यों के पास है, और यह हवा, भोजन और अन्य जरूरतें प्रदान करता है। मानवता की संपूर्ण जीवन समर्थन प्रणाली सभी पर्यावरणीय कारकों की भलाई पर निर्भर करती है। पर्यावरण वायु और जलवायु को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पर्यावरण से हमें क्या लाभ है?
पेड़-पौधों की हरियाली से मन का तनाव दूर होता है, और दिमाग को शांति मिलती है। पर्यावरण से ही हमारे अनेक प्रकार की बीमारी भी दूर होती है। पर्यावरण मनुष्य, पशुओं और अन्य जीव चीजों को बढ़ाने और विकास होने में मदद करती है। मनुष्य भी पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है।
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