तरंगें
ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार की तरंगें अस्तित्व रखती हैं, जैसे- प्रकाश तरंगें, ध्वनि तरंगें, महासागरीय तरंगें, जल तरंगें आदि। ये तरंगें किसी एक स्त्रोत से उत्पन्न होती हैं, और आगे बढ़ती हैं, तरंगे एक स्थान से दसरे स्थान तक स्थानान्तिरत होती हैं, एवं इनमें उर्जा संचित होती है, परंतु तंरगों के साथ विशेष बात यह है कि इनके स्त्रोत एक अपने स्थान पर यथावत बने रहते हैं। इन्हीं तरंगों के माध्यम से हम देखने-सुनने और बहुत से कार्य कर पाने में सक्षम होते हैं। रेडियो, टेलीविजन आदि भी इन्हीं तरंगों की सहायता से कार्य करते हैं। तरंगें हमारे जीवन में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बहुत महत्व रखती हैं। इस आर्टिकल में तरंगों के संदर्भ में परिचयात्मक जानकारी दी जाएगी जो आगे प्रकाश की तरंग प्रकृति और ध्वनि को समझने में सहायक होगा। चंद्रमा पर खड़े दो व्यक्ति एक-दूसरे की आवाज नहीं सुन सकते क्यांकि चंद्रमा में वायुमण्डल नहीं है। ध्वनि यांत्रिक तरंग है इसलिए यह निर्वात में गमन नहीं कर सकती परंतु वे एक-दूसरे को देख सकते हैं क्योंकि प्रकाश विद्युत चुम्बकीय तरंग है जो कि निर्वात में गमन कर सकता है।
तरंगों की उत्पत्ति
तरंगों का उत्पन्न होना इनके स्त्रोत के कंपन के कारण होता है। उदाहरण के तौर पर जब शांत पानी की सतह पर पत्थर फेंका जाता है, तो पानी की सतह पर तरंगे उत्पन्न होती हैं, जो फेंके गए पत्थर के चारों ओर चक्रों के रूप में केन्द्र से दूर जाती हुई दिखती हैं। परंतु पानी के कण अपने स्थान पर यथावत बने रहते हैं। हमारे आस-पास विभिन्न प्रकार के तरंग उपस्थित होते हैं। बहुत से जीव जो सुन-देख नहीं पाते अपनी त्वचा से इन्हीं तरंगों का आभास कर अपना भोजन तलाशते हैं। तरंग भी उर्जा का एक रूप हैं। प्रकाश तरंगे, महासागरीय तरंगे आस पास उर्जा के स्त्रोत होते हैं। किसी भी तरंग; यांत्रिक या अयांत्रिक में परावर्तन, अपवर्तन आदि की प्रवृत्ति होती है। अतः प्रकाश, ध्वनि, भूकम्पीय तरंगें सभी परावर्तित होती हैं, और विभिन्न वातावरणीय घटनाओं जैसे तारों का टिमटिमाना, आवाज का गूंजना आदि को अंजाम देती हैं।
तरंगों से जुड़े कुछ पारिभाषिक शब्द-
1. आवृत्ति: प्रति इकाई समय में तरंगों की संख्या को उनकी आवृत्ति कहते हैं।
2. तरंगदैर्ध्य: तरंग द्वारा प्रति इकाई समय में तय की गई दूरी उसका तरंगदैर्ध्य कहलाता है।
नोट- तरंगदैर्ध्य और आवृत्ति एक-दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती होते हैं।
3. आयाम: किसी तरंग के शीर्ष और गर्त के बीच की लंबाई को उसका आयाम कहा जाता है।
तरंगों के प्रकार
तरंगों को उनकी प्रकृति एवं उत्पन्न स्त्रोत के आधार पर दो प्रकारों में बांटा जाता है-
1. यांत्रिक तरंगे
2. विद्युतचुम्बकीय तरंगे
यांत्रिक तरंगे:
वे तरंगें जिनको गति करने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है, यांत्रिक तरंगे कहलाती हैं। ध्वनि एक प्रकार की यांत्रिक तरंग है।
यांत्रिक तरंगों को पुनः दो प्रकारों में विभक्त किया जाता है-
1. अनुप्रस्थ तरंगे
2. अनुदैर्ध्य तरंगे
भूकंप की प्राथमिक किरणें पृथ्वी के क्रोड तक पहुँचती हैं, क्योंकि ये अनुदैर्ध्य तरंगें हैं, जो ठोस द्रव और गैस तीनों में गति कर सकती है, परंतु द्वितीयक तरंगे नहीं पहुँचती क्योंकि ये अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं और मात्र ठोस और द्रव के उपरी सतह पर ही गमन कर सकती हैं।
अनुप्रस्थ तरंगें
अनुप्रस्थ तरंगें वे तरंगे होती हैं, जो इसके स्त्रोत की कंपन के दिशा के लंबवत आगे बढ़ते हैं। ये तरंगे मात्र ठोस एवं द्रव के उपरी सतह पर चल सकते हैं। इसे एक लंबी रस्सी का उदाहरण देकर समझा जा सकता है, जिसके दोनों सिरों को पकड़ कर उपर नीचे हिलाया जाता है, इस प्रकार हिलाने पर रस्सी की जो गति होती है, वही अनुप्रस्थ तरंग कहलाती है। भूकम्प की द्वितीयक तरंगें अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं। अनुप्रस्थ तरंगे आग बढ़ते हुए शीर्ष एवं गर्त का निर्माण करती हैं। एक शीर्ष एवं एक गर्त मिलकर एक पूरा तरंग बनाता है। यांत्रिक तरंगों की चाल सघन माध्यम में तीव्र हो जाती है जैसे ध्वनि की चाल पानी की अपेक्षा लोहे में अधिक होती है। वैसे ही रात्रि के समय ध्वनि की चाल अधिक होती है क्योंकि मौसम ठंडा होने के कारण भूमि के निकट के हवाओं का घनत्व बढ़ जाता है।
अनुदैर्ध्य तरंगें
वे तरंगें होती हैं जिनकी गति इनके उत्पत्ति स्त्रोत के कंपन की दिशा की ओर होती है। ये तरंगे प्रसरण एवं संकुचन के रूप में ही आगे बढ़ती हैं। एक स्प्रिंग को उदाहरण मानकर इसे इस तरंग को समझा जा सकता है, स्प्रिंग जब दाबमुक्त होता है तब यह प्रसरण की अवस्था में होता है, और जब इसके सिरों पर दाब आरोपित किया जाता है,
तब यह संकुचन की स्थिति में हेता है। अनुदैर्ध्य तरंगें इसी रूप में आगे बढ़ती हैं। ये तरंगे ठोस, द्रव, गैस तीनों माध्यमों में आगे बढ़ सकती हैं, विभिन्न माध्यमों में इनकी गति में भिन्नता होती है। ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं। इसके अतिरिक्त भूकम्प की प्राथमिक एवं एल तरंगें भी अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं। हमें बिजली की चमक पहले दिखाई देती है और तड़ित बाद में सुनाई देती है जबकि दोनों घटनाएँ एक साथ घटित होती हैं क्योंकि वायु में प्रकाश की चाल ध्वनि की अपेक्षा अधिक होती है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगे
वे तरंगें जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती, विद्युतचुम्बकीय तरंगें कहलाती हैं। उनके इस गुण के कारण इन्हें अयांत्रिक तरंगें भी कहा जाता है। ये तरंगें निर्वात में भी चल सकती हैं, सूर्य का प्रकाश विद्युतचुम्बकीय तरंग होता है, इस कारण यह निर्वात से होता हुआ पृथ्वी पर पहुँच जाता है। सूर्य में द्वैत प्रकृति होती है, यह कई स्थितियों में तरंग की भांति व्यवहार करता है, जैसे प्रकाश के परावर्तन, अपवर्तन, विक्षेपण को इसकी तरंग प्रकृति से समझा जा सकता है, परंतु कुछ स्थानों पर प्रकाश कण के समान व्यवहार करता है जैसे प्रकाशविद्युत प्रभाव आदि। प्रकाश के साथ रेडियों तरंगें भी विद्युतचुम्बकीय तरंगें होती हैं।
कुछ विद्युत चुम्बकीय तरंगे, उनके खोजकर्ता का नाम एवं उन तरंगों के प्रयोग-
विद्युत चुम्बकीय तरंगें खोजकर्ता उपयोग
गामा किरणें
बैकुरल
इसकी वेधन क्षमता अत्यधिक होती है, इसका उपयोग नाभिकीय अभिक्रिया तथा कृत्रिम रेडियो धर्मिता में की जाती है।
एक्स किरणें
रॉन्जन
इसका उपयोग चिकित्सा एवं औद्योगिक क्षेत्रा में किया जाता है।
पराबैंगनी किरणे
रिटर
इसका उपयोग सिंकाई करने, प्रकाश वैद्युत प्रभाव को उत्पन्न करने, बैक्टीरिया को नष्ट करने में किया जाता है।
दृश्य विकिरण
न्यूटन
इससे हमे वस्तुएँ दिखलाई पड़ती हैं।
अवरक्त विकिरण
हर्शेल
इसका उपयोग कुहरे में फोटोग्राफी करने एवं रोगियों की सेंकाई करने में किया जाता है।
लघु रेडियो तरंगें
हेनरिक हर्ट्ज
इसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन एवं टेलीपफोन में होता है।
दीर्घ रेडियो तरंगें
मारकोनी
इसका उपयोग रेडियो एवं टेलीविजन में होता है।
सारांश
1. तरंगे एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरित होती हैं परंतु तरंगों की उत्पत्ति का स्त्रोत स्थानान्तरित नहीं होता है।
2. प्रकाश में द्वैत प्रकृति होती है, अतः इसमें तरंग एवं कण दोनों के गुण होते हैं।
3. यांत्रिकी तरंगें वे तरंगें होती हैं जो किसी पदार्थिक माध्यम; ठोस, द्रव एव गैस में संचारित होती हैं।
4. अनुप्रस्थ तरंगें मात्र ठोस माध्यम में एवं द्रव के ऊपरी सतह पर उत्पन्न की जा सकती है। द्रवों के भीतर एवं गैसों में अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न नहीं की जा सकती हैं।
5. अनुदैर्ध्य तरंगें संपीडन एवं विरलन के रूप में संचालित होती हैं। संपीडन वाले स्थान पर माध्यम का दाब व घनत्व अधिक होता है, जबकि विरलन वाले स्थान पर माध्यम का दाब व घनत्व कम होता है।
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