आपदा प्रबंधन का इतिहास | History of Disaster Management
आपदा प्रबंधन का इतिहास
प्राकृतिक आपदा और संकट सभ्यता के प्रारंभ से लेकर मानव इतिहास का अभिन्न हिस्सा रहा है। सिंधु घाटी जैसी सभ्यताओं का उत्थान और पतन इसका साक्ष्य रहा है। प्राचीन काल में व्यक्ति और समुदाय संकट का प्रत्युत्तर देते थे। तथापि, आधुनिक कल्याणकारी राज्य के प्रादुर्भाव और 20वीं सदी की वैश्वीकरण की प्रवृत्तियों, शहरीकरण, बहुत बड़े पैमाने पर मानव आबादी के विस्थापन और मौसम में परिवर्तन से राष्ट्रों के सामने आने वाले संकटों की प्रकृति मात्रा और जटिलता दोनों बढ़ गई है। उदाहरणार्थ, जहां आपदाओं की बारम्बारता अपरिवर्तित रही है वहीं बढ़ते हुए जनसंख्या घनत्व और शहरीकरण से मानव जीवन और संपत्ति पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। लोक स्वास्थ्य के क्षेत्र में जहां विज्ञान ने महामारियों पर बड़ी विजय प्राप्त की है वहीं वायरस और औषधिरोधी सूक्ष्म अंग के नए दबाव और अधिक घातक बीमारियों के वैश्विक महामारियों की सत्ता बढ़ाते हुए उत्पन्न हुए हैं। इसी प्रकार जहां युद्ध की बारम्बारता घटी हैI
वहीं आधुनिक हथियारों और वृहद शहरीकरण ने ऐसे विवादों से हुए मानव संकट को कई गुना बढ़ा दिया है। आतंकवाद की महाविपत्ति ने नई किस्मों के संकट उत्पन्न किए हैं और संचार तथा कम्प्यूटर नेटवर्क पर बढ़ती हुई निर्भरता ने नई आपात स्थितियों का खतरा बढ़ा दिया है। इसके अतिरिक्त आधुनिकीकरण, सूचना विस्फोट, पराराष्ट्रीय विपथन और राष्ट्रों में आर्थिक परस्पर निर्भरता जैसी घटनाओं ने वृहत्तर क्षेत्रों में संकट की स्थिति का प्रभाव फैलाने में योगदान दिया है।
आपदा से तात्पर्य उस विषम स्थिति से है जो मानवीय, भौतिक, पर्यावरण तथा सामाजिक कारकों को व्यापक रूप से प्रभावित करती है तथा सामान्य दिनचर्या में भारी व्यवधान डालती है। सामान्यतया आपदा से तात्पर्य प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, भूकंप, चक्रवात, सूनामी, बिजली गिरना तथा ओलावृष्टि आदि से है।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वह सभी घटनायें जो प्रकृति के अंदर विस्तृत क्षेत्र में घटित होती हैं तथा जिनका व्यापक विनाशकारी प्रभाव होता है, प्राकृतिक आपदायें कहलाती हैं। इस भोगवादी अथ र्व्यवस्था तथा बढ़ती हुई आबादी के कारण प्रकृति के साथ अत्यधिक हस्तक्षेप हो रहा है परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई है। संकट को कई अत्यधिक उपायों के माध्यम से भी कम किया जा सकता है, जो या तो खतरे की सीमा और तीव्रता को कम अथवा संशोधित कर सकते हैं अथवा जोखिम में अवयवों के टिकाऊपन और क्षमता को सुधार सकते हैं। उदाहरणार्थ, भवन संहिताओं को बेहतर ढंग से लागू करना और आंचलिकरण विनियम, जल निकासी प्रणालियों का उचित रख-रखाव, खतरों के जोखिम को कम करने के लिए बेहतर जागरुकता और जन शिक्षा आदि। विभिन्न किस्मों की आपदाओं के लिए कम करने के उपाय भिन्न-भिन्न हो सकते हैं परंतु इस बात पर बल दिए जाने की आवश्यकता है कि विभिन्न उपायों के साथ प्राथमिकता और महत्व संबद्ध किया जाए। इसे करने के लिए एक उपयुक्त कानूनी और प्रचालनात्मक ढांचा अनिवार्य है।
जब कोई आपदा वास्तव में उत्पन्न होती है तब उससे प्रभावित हाेने वालो की पीड़ा और क्षति दूर करने और उसे न्यूनतम करने के लिए तीव्र प्रत्युत्तर की अपेक्षा होती है। इस चरण में कतिपय प्राथमिक कार्यकलाप अनिवार्यहो जाती है।
ये निकासी, बचाव और उसके बाद बुनियादी आवश्यकताओ जैसे भोजन, वस्त्र, आश्रयस्थल, दवाइ र्यां तथा प्रभावित समुदाय का जीवन सामान्य करने के लिए अनिवार्य अन्य आवश्यकताएं हैं।
खतरे और आपदा के बीच विभेद
सच तो यह है कि प्राकृतिक आपदा के समान और ऐसी कोई चीज नहीं है परन्तु चक्रवात और भूकम्प जैसे प्राकृतिक खतरे हैं। खतरे और आपदा के बीच विभेद महत्वपूर्ण है। आपदा उस समय होती है जब कोई समुदाय किसी खतरे (प्रायः किसी घटना और यहां तक कि मनोवैज्ञानिक कारक जो लोगों को इस प्रकार बना देते हैं जो सामना करने के लिए उस समुदाय की क्षमता कम कर देते हैं, के रूप में भी परिभाषित) द्वारा प्रभावित होता है। दूसरे शब्दों में आपदा के प्रभाव का निर्धारण खतरे के प्रति किसी समुदाय की असुरक्षा की सीमा द्वारा किया जाता है। यह असुरक्षा प्राकृतिक नहीं है। यह आपदाओं का मानवीय आयाम है. जो आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थात्मक, राजनीतिक जीवन की पूर्ण सीमा है और वह उस वातावरण को सृजित करता है जिसमें वह रहते हैं।
आपदा की श्रेणियाँ
आपदा को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता हैः
1. प्रकृति द्वारा उत्पन्न संकट
A. मौसमी घटनाएँ,
I. चक्रवात और तूफान (संबद्ध समुद्र क्षरण)
II. बाढ़
III. सूखा
B. भौगोलिक घटनाएं
I. भूकम्प
II. सुनामी
III. भूस्खलन
IV. हिमस्खलन
2. दुर्घटनाओं द्वारा उत्पन्न संकट
A. औद्योगिक दुर्घटना
B. न्यूक्लियर दुर्घटना
C. अग्नि संबद्ध दुर्घटना
3. जीववैज्ञानिक कार्यकलापों से उत्पन्न संकट
A. महामारियां
4. उग्र तत्वां द्वारा उत्पन्न आपदा संकट
A. युद्ध
B. आतंकवाद
C. उग्रवाद
5. नियंत्रण से बाहर विशाल भीड़ द्वारा उत्पन्न आपदा
FAQ
आपदा प्रबंधन क्या है?
आपदा प्रबंधन क्या है – Disaster Management in Hindi
आपदा प्रबंधन प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान जीवन और संपत्ति की रक्षा करने और आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए विशेष तैयारी की प्रक्रिया है. आपदा प्रबंधन सीधे खतरे को खत्म नहीं करता है बल्कि यह योजना बनाकर जोखिम को कम करने में मदद करता है.
आपदा प्रबंधन कितने प्रकार के हैं?
• आपदा पूर्व प्रबंधन
• आपदा काल में प्रबंधन
• आपदा पश्चात प्रबंधन
आपदा क्या है इसके प्रकार?
आपदाएं दो प्रकार की होती हैं प्राकृतिक आपदा व मानव जनित आपदा। प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, बाढ़, सूखा, वनों में आग लगना , शीतलहर, समुद्री तूफान, तापलहर, सुनामी, आकाशीय बिजली का गिरना, बादलों का फटना आदि आते हैं। आपदाओं को सदैव मानव के साथ जोड़कर देखा जाता है।
आपदा प्रबंधन का उद्देश्य क्या है?
आपदाओं के कारण मानव, संपत्ति और पर्यावरणीय हानि को रोकना व कम करना । आपदा प्रबंधन को सभी स्तरों पर सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ किये जाने एवं रोकथाम और तैयारी की संस्कृति को बढ़ावा देना। अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और पर्यावरणीय स्थिरता के आधार पर न्यूनीकरण उपायों को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना।
आपदा प्रबंधन के कितने चरण होते हैं?
योजना के दायरे में आपदा प्रबंधन के सभी चरण शामिल हैं- रोकथाम, जोखिम कम करना, प्रत्युात्तर तथा बहाली।
प्राकृतिक आपदा कितने प्रकार की है?
प्राकृतिक आपदा
• हिमस्खलन
• भूकंप
• लहर
• भूस्खलन एंवं मिटटी का बहाव
• ज्वालामुखीय विस्फोट
• बाढ़
• लिम्निक ईरप्शन
• सूनामी
आपदा शिक्षा क्या है?
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित बच्चों के लिए गुणवत्तापरक, अबाधित, सुरक्षित शिक्षा देना और सामाजिक एकजुटता सुनिश्चित करना
आपदा प्रबंधन के लक्षण क्या है?
प्राकृतिक आपदा
उपर्युक्त आपातकालिन प्रबंधन (emergency management) की कमी द्वारा मानव सुभेद्यता (vulnerability) से वित्तीय, पर्यावरण सम्बन्धी या मानवीय प्रभाव होतें हैं। परिणामी हानि या विरोध आपदा जनसँख्या के सहयोग की क्षमता पर निर्भर करती है। समझ निर्माण में केंद्रित है "आपदा के समय खतरों के होने से जोखिम होता है"।
आपदा प्रबंधन के प्रमुख घटक क्या है?
आपदा के खतरे जोखिम एवं शीघ्र चपेट में आनेवाली स्थितियों के मेल से उत्पन्न होते हैं। जोखिम प्रबंधनके तीन घटक होते हैं। इसमें खतरे की पहचान, खतरा कम करना (ह्रास) और उत्तरवर्ती आपदा प्रबंधनशामिल है। इसमें खतरे की पहचान, खतरा कम करना (ह्रास) और उत्तरवर्ती आपदा प्रबंधनशामिल है।
आपदा के दुष्प्रभाव क्या है?
इसके साथ ही एक सुनिश्चित क्षेत्र में आजीविका तथा सम्पत्ति की हानि होती है जिसकी परिणति मानवीय वेदना तथा कष्टों में होती है। - आपदा समाज की सामान्य कार्य प्रणाली को बाधित करती है । इसके कारण बहुत बड़ी संख्या मे लोग प्रभावित होते हैं। - इसके कारण जीवन तथा सम्पत्ति की बड़े पैमाने पर हानि होती है ।
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